ब्रिटिशकालीन इतिहास की धरोहर: नैनीताल की नगर पालिका, जहां उपाध्यक्ष रहे जिम कॉर्बेट।

नैनीताल। नैनीताल की नगर पालिका का इतिहास अपने आप में बेहद पुराना और रोचक है। यह नगरपालिका 1850 में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान स्थापित हुई थी और उत्तर-पश्चिमी प्रांत की दूसरी सबसे पुरानी नगरपालिका मानी जाती है। इसकी ऐतिहासिक इमारत आज भी अपनी भव्यता और ब्रिटिश वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण के कारण लोगों को आकर्षित करती है।

इस ऐतिहासिक इमारत में एक विशाल हॉल है, जहां नगर पालिका की महत्वपूर्ण बैठकें आयोजित की जाती हैं। वर्षों से इस नगरपालिका ने कई ऐतिहासिक घटनाओं और बदलावों का साक्षी बनने के साथ नैनीताल के विकास में अहम भूमिका निभाई है।

आजादी के बाद भारतीय नेतृत्व।

आजादी के बाद, नैनीताल नगरपालिका को अपना पहला भारतीय चेयरमैन जसोद सिंह बिष्ट के रूप में मिला। उन्होंने अपने कार्यकाल में नगर के विकास और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया। इतिहासकार प्रोफेसर अजय रावत के अनुसार, उस समय माल रोड पर होटलों के सामने कपड़े सुखाने तक की अनुमति नहीं थी।

जसोद सिंह बिष्ट का योगदान केवल नगरपालिका तक सीमित नहीं रहा; बाद में वे राज्यसभा के सदस्य भी बने। उन्होंने 1875 में आर्य समाज मंदिर की स्थापना में भी भूमिका निभाई और मंदिर के लिए जमीन उपलब्ध कराने में योगदान दिया।

उनके बाद मनोहर लाल साह चेयरमैन बने, जिन्होंने शिक्षा और समाज सुधार के लिए उल्लेखनीय कार्य किए। उनके कार्यकाल में नैनीताल नगरपालिका को “बेस्ट ट्री प्लांटेशन” का पुरस्कार भी मिला, जो पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान को दर्शाता है।

जिम कॉर्बेट: नैनीताल के वाइस चेयरमैन

नैनीताल नगरपालिका के इतिहास का एक और महत्वपूर्ण पहलू है प्रसिद्ध वन्यजीव विशेषज्ञ और लेखक जिम कॉर्बेट का इससे जुड़ाव। प्रोफेसर रावत बताते हैं कि 1920 के दशक में जिम कॉर्बेट नगर पालिका के वाइस चेयरमैन रहे। उन्होंने न केवल नगर के विकास के लिए व्यक्तिगत रूप से धनराशि दी, बल्कि नैनीताल को एक बर्ड सेंचुरी बनाने का प्रस्ताव भी रखा। इसके अलावा, उन्होंने पाईस मुर्दाघाट के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान किया, जो उनके सामाजिक योगदान का एक और प्रमाण है।

इतिहास की जड़ें आज भी जीवित

नैनीताल नगरपालिका की ऐतिहासिक विरासत इसे उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्रों में से एक बनाती है। इसकी स्थापना से लेकर वर्तमान तक, यह नगरपालिका न केवल नैनीताल के विकास का प्रतीक है, बल्कि उन ऐतिहासिक शख्सियतों के योगदान को भी याद दिलाती है, जिन्होंने नगर के लिए अपने अमूल्य प्रयास किए।

नैनीताल की यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।

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